Aditya Hridaya Stotra – A Prayer to Sun God

Sun God - Aditya Hridaya Stotra

Aditya Hridaya Stotra is a Sanskrit prayer that eulogizes Surya Devta (Sun God). Sage Agastya advised Lord Rama to sing this prayer while confronting Ravana on the battlefield. It consists of 31 verses and is found in the 107th chapter of the Yuddha Kanda of the Ramayana.

Meaning of the words “Aditya Hridaya Stotra”:

Aditya is another name for Sun. Hridaya means “heart or essence,” and stotra means a prayer.

Who Wrote Aditya Hridaya Stotra?

According to Valmiki Ramayana, Sage Agastya wrote this stotra and gave it to Lord Rama to help him defeat Ravana.

The Background Story About the Stotra:

When the fight between Lord Rama and Ravana began, Sage Agastya came there to witness the battle along with other gods. When he saw Lord Rama exhausted by the conflict, standing absorbed in thought on the battlefield, and Ravana, facing him, preparing to begin the encounter anew. He approached Lord Rama and advised him to sing Aditya Hridaya Stotra.

After that, meditating on Aditya, Lord Rama recited the hymn and experienced supreme felicity.

Aditya Hridaya Stotra in Hindi with Meaning:

विनियोग

ॐ अस्य आदित्यहृदयस्तोत्रस्यागस्त्यऋषिरनुष्टुप् छन्दः, आदित्यहृदयभूतो भगवान् ब्रह्मा देवता निरस्ताशेषविघ्नतया ब्रह्मविद्यासिद्धौ सर्वत्र जयसिद्धौ च विनियोगः।

ऋष्यादिन्यास

ॐ अगस्त्यऋषये नमः, शिरसि। अनुष्टुप् छन्दसे नमः, मुखे। आदित्य-हृदयभूत-ब्रह्मदेवतायै नमः, हृदि। ॐ बीजाय नमः, गुह्ये। रश्मिमते शक्तये नमः, पादयोः। ॐ तत्सवितुरित्यादिगायत्रीकीलकाय नमः, नाभौ।

||अथ आदित्य हृदय स्तोत्रं||

ततो युद्धपरिश्रान्तं समरे चिन्तया स्थितम्

रावणं चाग्रतो दृष्ट्वा युद्धाय समुपस्थितम् 1

दैवतैश्च समागम्य द्रष्टुमभ्यागतो रणम्

उपगम्याब्रवीद् राममगस्त्यो भगवांस्तदा 2

उधर श्री रामचन्द्र जी युद्ध से थक कर चिन्ता करते हुए रणभूमि में खड़े थे। इतने में रावण भी युद्ध के लिये उनके सामने उपस्थित हो गया। यह देख अगस्त्य मुनि, जो देवताओं के साथ युद्ध देखने के लिये आये थे, श्रीराम के पास जाकर बोले।

राम राम महाबाहो शृणु गुह्यं सनातनम्

येन सर्वानरीन् वत्स समरे विजयिष्यसे 3

सबके हृदय में रमण करने वाले महाबाहो राम! यह सनातन गोपनीय स्तोत्र सुनो। वत्स! इसके जप से तुम युद्ध में अपने समस्त शत्रुओं पर विजय पा जाओगे।

आदित्यहृदयं पुण्यं सर्वशत्रुविनाशनम्

जयावहं जपं नित्यमक्षयं परमं शिवम् 4

सर्वमङ्गलमाङ्गल्यं सर्वपापप्रणाशनम्

चिन्ताशोकप्रशमनमायुर्वर्धनमुत्तमम् 5

इस गोपनीय स्तोत्र का नाम है ‘आदित्य हृदय‘। यह परम पवित्र और सम्पूर्ण शत्रुओं का नाश करने वाला है। इसके जप से सदा विजय की प्राप्ति होती है। यह नित्य अक्षय और परम कल्याणमय स्तोत्र है। सम्पूर्ण मंगलों का भी मंगल है। इससे सब पापों का नाश हो जाता है। यह चिन्ता और शोक को मिटाने वाला तथा आयु को बढ़ाने वाला उत्तम साधन है।

रश्मिमन्तं समुद्यन्तं देवासुरनमस्कृतम्

पूजयस्व विवस्वन्तं भास्करं भुवनेश्वरम् 6

भगवान सूर्य अपनी अनन्त किरणों से सुशोभित (रश्मिमान्) हैं। ये नित्य उदय होने वाले (समुद्यन्), देवता और असुरों से नमस्कृत, विवस्वान् नाम से प्रसिद्ध, प्रभा का विस्तार करने वाले (भास्कर) और संसार के स्वामी (भुवनेश्वर) हैं। तुम इनका (रश्मिमते नमः, समुद्यते नमः, देवासुरनमस्कृताय नमः, विवस्वते नमः, भास्कराय नमः, भुवनेश्वराय नमः – इन नाम मन्त्रों के द्वारा) पूजन करो।

सर्वदेवात्मको ह्येष तेजस्वी रश्मिभावनः

एष देवासुरगणाँल्लोकान् पाति गभस्तिभिः 7

सम्पूर्ण देवता इन्हीं के स्वरुप हैं। ये तेज की राशि तथा अपनी किरणों से जगत को सत्ता एवं स्फूर्ति प्रदान करने वाले हैं। ये ही अपनी रश्मियों का प्रसार करके देवता और असुरों सहित सम्पूर्ण लोकों का पालन करते हैं।

एष ब्रह्मा विष्णुश्च शिवः स्कन्दः प्रजापतिः

महेन्द्रो धनदः कालो यमः सोमो ह्यपां पतिः 8

पितरो वसवः साध्या अश्विनौ मरुतो मनुः

वायुर्वह्निः प्रजाः प्राण ऋतुकर्ता प्रभाकरः 9

ये ही ब्रह्मा, विष्णु, शिव, स्कन्द, प्रजापति, इन्द्र, कुबेर, काल, यम, चन्द्रमा, वरुण, पितर, वसु, साध्य, अश्विनी कुमार, मरुद्गण, मनु, वायु, अग्नि, प्रजा, प्राण, ऋतुओं को प्रकट करने वाले तथा प्रभा के पुंज हैं।

आदित्यः सविता सूर्यः खगः पूषा गभस्तिमान्

सुवर्णसदृशो भानुर्हिरण्यरेता दिवाकरः 10

हरिदश्वः सहस्रार्चिः सप्तसप्तिर्मरीचिमान्

तिमिरोन्मथनः शम्भुस्त्वष्टा मार्तण्डकोंऽशुमान् 11

हिरण्यगर्भः शिशिरस्तपनोऽहस्करो रविः

अग्निगर्भोऽदितेः पुत्रः शङ्खः शिशिरनाशनः 12

व्योमनाथस्तमोभेदी ऋग्यजुःसामपारगः

घनवृष्टिरपां मित्रो विन्ध्यवीथीप्लवंगमः 13

आतपी मण्डली मृत्युः पिङ्गलः सर्वतापनः

कविर्विश्वो महातेजा रक्तः सर्वभवोद्भवः 14

नक्षत्रग्रहताराणामधिपो विश्वभावनः

तेजसामपि तेजस्वी द्वादशात्मन् नमोऽस्तु ते 15

इन्हीं के नाम आदित्य (अदिति पुत्र), सविता (जगत को उत्पन्न करने वाले), सूर्य (सर्वव्यापक), खग (आकाश में विचरने वाले), पूषा (पोषण करने वाले), गभस्तिमान् (प्रकाशमान), सुवर्णसदृश, भानु (प्रकाशक), हिरण्यरेता (ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बीज), दिवाकर (रात्रि का अन्धकार दूर करके दिन का प्रकाश फैलाने वाले), हरिदश्व (दिशाओं में व्यापक अथवा हरे रंग के घोड़े वाले), सहस्रार्चि (हजारों किरणों से सुशोभित), सप्तसप्ति (सात घोड़ों वाले), मरीचिमान् (किरणों से सुशोभित), तिमिरोन्मथन (अन्धकार का नाश करने वाले), शम्भु (कल्याण के उद्गम स्थान), त्वष्टा (भक्तों का दुःख दूर करने वाले अथवा जगत का संहार करने वाले), मार्तण्डक (ब्रह्माण्ड को जीवन प्रदान करने वाले), अंशुमान् (किरण धारण करने वाले), हिरण्यगर्भ (ब्रह्मा), शिशिर (स्वभाव से ही सुख देने वाले), तपन (गर्मी पैदा करने वाले), अहस्कर (दिनकर),

रवि (सबकी स्तुति के पात्र), अग्निगर्भ (अग्नि को गर्भ में धारण करने वाले), अदितिपुत्र, शंख (आनन्दस्वरूप एवं व्यापक), शिशिरनाशन (शीत का नाश करने वाले), व्योमनाथ (आकाश के स्वामी), तमोभेदी (अन्धकार को नष्ट करने वाले), ऋग् , यजुः और सामवेद के पारगामी, घनवृष्टि (घनी वृष्टि के कारण), अपां मित्र (जल को उत्पन्न करने वाले), विन्ध्यवीथीप्लवंगम (आकाश में तीव्र वेग से चलने वाले), आतपी (घाम उत्पन्न करने वाले),

मण्डली (किरण समूह को धारण करने वाले), मृत्यु (मौत के कारण), पिंगल (भूरे रंग वाले), सर्वतापन (सबको ताप देने वाले), कवि (त्रिकालदर्शी), विश्व (सर्वस्वरूप), महातेजस्वी, रक्त (लाल रंग वाले), सर्वभवोद्भव (सबकी उत्पत्ति के कारण), नक्षत्र, ग्रह और तारों के स्वामी, विश्वभावन (जगत की रक्षा करने वाले), तेजस्वियों में भी अति तेजस्वी तथा द्वादशात्मा (बारह स्वरूपों में अभिव्यक्त) हैं। इन सभी नामों से प्रसिद्ध सूर्यदेव! आपको नमस्कार है।

नमः पूर्वाय गिरये पश्चिमायाद्रये नमः

ज्योतिर्गणानां पतये दिनाधिपतये नमः 16

पूर्वगिरि – उदयाचल तथा पश्चिमगिरि – अस्ताचल के रूप में आपको नमस्कार है। ज्योतिर्गणों (ग्रहों और तारों) के स्वामी तथा दिन के अधिपति आपको प्रणाम है।

जयाय जयभद्राय हर्यश्वाय नमो नमः

नमो नमः सहस्रांशो आदित्याय नमो नमः 17

आप जयस्वरूप तथा विजय और कल्याण के दाता हैं। आपके रथ में हरे रंग के घोड़े जुते रहते हैं। आपको बारंबार नमस्कार है। सहस्रों किरणों से सुशोभित भगवान सूर्य! आपको बारंबार प्रणाम है। आप अदिति के पुत्र होने के कारण आदित्य नाम से प्रसिद्ध हैं, आपको नमस्कार है।

नमः उग्राय वीराय सारङ्गाय नमो नमः

नमः पद्मप्रबोधाय प्रचण्डाय नमोऽस्तु ते 18

उग्र (अभक्तों के लिये भयंकर), वीर (शक्ति सम्पन्न) और सारंग (शीघ्रगामी) सूर्यदेव को नमस्कार है। कमलों को विकसित करने वाले प्रचण्ड तेजधारी मार्तण्ड को प्रणाम है।

ब्रह्मेशानाच्युतेशाय सूरायादित्यवर्चसे

भास्वते सर्वभक्षाय रौद्राय वपुषे नमः 19

परात्पर रूप में आप ब्रह्मा, शिव और विष्णु के भी स्वामी हैं। सूर आपकी संज्ञा है, यह सूर्यमण्डल आपका ही तेज है, आप प्रकाश से परिपूर्ण हैं, सबको स्वाहा कर देने वाला अग्नि आपका ही स्वरुप है, आप रौद्ररूप धारण करने वाले हैं, आपको नमस्कार है।

तमोघ्नाय हिमघ्नाय शत्रुघ्नायामितात्मने

कृतघ्नघ्नाय देवाय ज्योतिषां पतये नमः 20

आप अज्ञान और अन्धकार के नाशक, जडता एवं शीत के निवारक तथा शत्रु का नाश करने वाले हैं, आपका स्वरुप अप्रमेय है। आप कृतघ्नों का नाश करने वाले, सम्पूर्ण ज्योतियों के स्वामी और देवस्वरूप हैं, आपको नमस्कार है।

तप्तचामीकराभाय हरये विश्वकर्मणे

नमस्तमोऽभिनिघ्नाय रुचये लोकसाक्षिणे 21

आपकी प्रभा तपाये हुए सुवर्ण के समान है, आप हरि (अज्ञान का हरण करने वाले) और विश्वकर्मा (संसार की सृष्टि करने वाले) हैं, तम के नाशक, प्रकाशस्वरूप और जगत के साक्षी हैं, आपको नमस्कार है।

नाशयत्येष वै भूतं तमेष सृजति प्रभुः

पायत्येष तपत्येष वर्षत्येष गभस्तिभिः 22

रघुनन्दन! ये भगवान सूर्य ही सम्पूर्ण भूतों का संहार, सृष्टि और पालन करते हैं। ये ही अपनी किरणों से गर्मी पहुँचाते और वर्षा करते हैं।

एष सुप्तेषु जागर्ति भूतेषु परिनिष्ठितः

एष चैवाग्निहोत्रं फलं चैवाग्निहोत्रिणाम् 23

ये सब भूतों में अन्तर्यामी रूप से स्थित होकर उनके सो जाने पर भी जागते रहते हैं। ये ही अग्निहोत्र तथा अग्निहोत्री पुरुषों को मिलने वाले फल हैं।

देवाश्च क्रतवश्चैव क्रतूनां फलमेव

यानि कृत्यानि लोकेषु सर्वेषु परमप्रभुः 24

(यज्ञ में भाग ग्रहण करने वाले) देवता, यज्ञ और यज्ञों के फल भी ये ही हैं। सम्पूर्ण लोकों में जितनी क्रियाएँ होती हैं, उन सबका फल देने में ये ही पूर्ण समर्थ हैं।

एनमापत्सु कृच्छ्रेषु कान्तारेषु भयेषु

कीर्तयन् पुरुषः कश्चिन्नावसीदति राघव 25

राघव! विपत्ति में, कष्ट में, दुर्गम मार्ग में तथा और किसी भय के अवसर पर जो कोई पुरुष इन सूर्यदेव का कीर्तन करता है, उसे दुःख नहीं भोगना पड़ता।

पूजयस्वैनमेकाग्रो देवदेवं जगत्पतिम्

एतत्त्रिगुणितं जप्त्वा युद्धेषु विजयिष्यसि 26

इसलिये तुम एकाग्रचित्त होकर इन देवाधिदेव जगदीश्वर की पूजा करो। इस आदित्य हृदय का तीन बार जप करने से कोई भी युद्ध में विजय प्राप्त कर सकता है।

अस्मिन् क्षणे महाबाहो रावणं त्वं जहिष्यसि

एवमुक्त्वा ततोऽगस्त्यो जगाम यथागतम् 27

महाबाहो! तुम इसी क्षण रावण का वध कर सकोगे। यह कह कर अगस्त्य जी जैसे आये थे, उसी प्रकार चले गये।

एतच्छ्रुत्वा महातेजा नष्टशोकोऽभवत् तदा

धारयामास सुप्रीतो राघवः प्रयतात्मवान् 28

आदित्यं प्रेक्ष्य जप्त्वेदं परं हर्षमवाप्तवान्

त्रिराचम्य शुचिर्भूत्वा धनुरादाय वीर्यवान् 29

रावणं प्रेक्ष्य हृष्टात्मा जयार्थं समुपागमत्

सर्वयत्नेन महता वृतस्तस्य वधेऽभवत् 30

उनका उपदेश सुनकर महातेजस्वी श्री रामचन्द्र जी का शोक दूर हो गया। उन्होंने प्रसन्न होकर शुद्ध चित्त से ‘आदित्य हृदय’ को धारण किया और तीन बार आचमन करके शुद्ध हो भगवान सूर्य की ओर देखते हुए इसका तीन बार जप किया। इससे उन्हें बड़ा हर्ष हुआ। फिर परम पराक्रमी रघुनाथ जी ने धनुष उठाकर रावण की ओर देखा और उत्साहपूर्वक विजय पाने के लिये वे आगे बढ़े। उन्होंने पूरा प्रयत्न करके रावण के वध का निश्चय किया।

अथ रविरवदन्निरीक्ष्य रामं मुदितमनाः परमं प्रहृष्यमाणः

निशिचरपतिसंक्षयं विदित्वा सुरगणमध्यगतो वचस्त्वरेति 31

उस समय देवताओं के मध्य में खड़े हुए भगवान सूर्य ने प्रसन्न होकर श्री रामचन्द्र जी की ओर देखा और निशाचरराज रावण के विनाश का समय निकट जानकर हर्षपूर्वक कहा – ‘रघुनन्दन! अब जल्दी करो’|

॥ आदित्य हृदय स्तोत्र सम्पूर्ण ॥

Benefits of Reading:

1. Brings upon the grace of Sun God.

2. Promotion in the job.

3. Increases confidence and cheerfulness.

4. Helps defeat enemies.

Aditya Hridaya Stotra PDF:

You can download the stotra in PDF format by clicking here.

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